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जानिए मुसलमानों की वफ़ादारी


1-महात्मा ज्योतिबा फूले को अपना स्कूल बनाने के लिये जमीन उस्मान शेख नाम के एक मुसलमान ने दी थी ।
2- उस्मान शेख की बहन फातिमा शेख ने सावित्री बाई फूले का साथ देकर उनके स्कूल में  पढा़ने का काम किया था ।
3-बाबा साहेब डॉ0 आंबेडकर  ने जब चावदार तालाब का आंदोलन चलाया तो जनसभा करने के लिये उनको कोई हिन्दू जगह नहीं दे रहा था। तब मुस्लिम समाज के लोगो ने बाबा साहब की सभा के लिए स्थान की व्यवस्था की और कहा की आंबेडकर जी आप एस स्थली पर सभा कर सकते है ।"
4-गोलमेज परिषद मे जब गांधी जी ने बाबा साहेब का विरोध किया था और रात के बारह बजे गांधी जी ने मुसलमानों को बुलाकर कहा था कि आप अम्बेडकर का विरोध करो तो मैं आपकी सभी मांगे पूरी करुंगा ।
तब मुसलमान भाई आगार खांन साहब ने गांधी जी को मना कर दिया था और कहा था कि हम बाबासाहेब का विरोध किसी भी सूरत मे नहीं करेंगे ।
5- मौलाना हसरत मोहानी ने बाबा साहब को रमजा़न के पवित्र माह में अपने घर रोजा़ इफ्तार की दावत दी थी जबकि पंडित मदनमोहन मालवीय ने तो पानी का गिलास तक आमंत्रित नही किया था ।
 6-जब सारे हिन्दुओं (गांधी और नेहरू) ने मिलकर बाबासाहेब के लिये संविधान सभा में पहुंचने के सारे दरवाजे और खिड़किया भी बंध कर दी थी, तब पश्चिम बंगाल के (खुलना-जैसोर अब बंगलादेश) के  मुसलमानों व चांडालों ने बाबासाहेब को वोट देकर और चुनाव जिताकर संविधान सभा मे  भेजा था।


सावधान: इसीलिए SC, ST और OBC समाज के लोगों को यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि मुस्लिम नेताओं ने बाबा साहेब डॉ0 आंबेडकर का अक्सर साथ दिया था जबकि गांधी और तिलक एन्ड इनकी कम्पनी हमेशा ही बाबा साहेब डॉ0 आंबेडकर का विरोध करके उनके रास्ते में मुश्किलें पैदा करते रहे थे और कदम-कदम पर बाबा साहेब डॉ0 आंबेडकर को अपमानित भी करते थे।
 वर्तमान में भी SC, ST और OBC के आरक्षण के खिलाफ संघी ही आंदोलन चलाते हैं, मुस्लिम नही।
  महत्वपूर्ण बात तो यह है  sc/st/obc को मिले आरक्षण के खिलाफ किसी मुसलमान नेता को आंदोलन करते हुए हमारे पूर्वजों ने तो तब भी नही देखा, जब यह आजादी से पूर्व हमे मिला था। न ही तब हमने देखा जब 1992 में ओबीसी के लिये आरक्षण लागू हुआ और न ही अब किसी मुसलमान नेता को हमने आरक्षण के खिलाफ आंदोलन करते देखा।
 क्या ये मुसलमानों द्वारा हमारे मसीहा बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अंबेडकर और हमारे समाज के साथ वफादारी का सबूत नही है?
यदि वफ़ादारी का सबूत है, तो हमे भी मुस्लिमो के दुःख-दर्द में वफ़ादारी निभानी चाहिये।
  वर्तमान में हमारे समाज और मुस्लिम समाज पर जिस प्रकार जुल्म-ज्यादती और और अत्याचार हो रहा है और हमारे साथ हमारे ही देश में गुलामो जैसा वर्ताव किया जा रहा है।

वक्त का तकाजा है कि हमें मुसलमानों के दुःख-दर्द में साथ रहना चाहिये और मुसलमानों को पहले की तरह हमारे समाज के दुःख-दर्द में साथ रहना चाहिए।
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