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बहन मायावती ने कहा दयाशंकर को गिरफ्तार करो वरना ?

मायावती पर एक भाजपा नेता द्वारा की गयी कथित ‘अभद्र’ टिप्पणी पर मायावती का जो ‘गुस्सा’ संसद में नज़र आया उसकी व्याख्या जरूरी है.. हालांकि यह भी सही है कि उक्त भाजपा नेता के द्वारा सार्वजनिक मंच पर से मायावती के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया गया....असंसदीय तो हो सकते हैं लेकिन जिस संदर्भ (करोड़ो रूपयों में टिकट बेचने, या कहा जाये नीलाम करने) में ये बात कही गयी,...सब जानते हैं कि 100 फीसदी सही है।  हमारे महापुरूषों के बहुजन आन्दोलन के आधार पर साहब कांशीराम जी द्वारा बनाई गयी पार्टी अर्थात् बहुजन समाज पार्टी को आज मायावती ने एक ‘‘थोक की मंडी’’ बना दिया है.... जिसके मुख्य आढ़तिये (थोक विक्रेता) माया-मिश्रा एण्ड कम्पनी हैं।

दूसरी बात, अपने ऊपर इस कथित अभद्र टिप्पणी पर माया का गुस्सा इस कदर फूटा।.. लेकिन अभी 2-3 दिन पहले हरियाणा प्रदेश में एक स्वाभिमानी दलित लड़की के साथ कुछ सवर्णों द्वारा दूसरी बार बलात्कार करने वाली वीभत्स और दर्दनाक घटना पर मायावती का गुस्सा कहां चला गया। क्या दलित समाज की बेटी से मायावती की अपनी ‘इज्जत’ ज्यादा महत्वपूर्ण है? एक सच्चा नेता वह होता है जो कि समाज के दुख, दर्द, अपमान को अपना दुखदर्द, अपमान समझता है। और नकली नेता अपने ‘अपमान’ को ‘समाज का अपमान’ बताता है। अपने ऊपर इस कथित अभद्र टिप्पणी को पूरे दलित समाज का अपमान बताना.............और दलित समाज की बहन, बेटियों के खिलाफ बलात्कार, जुल्म ज्यादती को दरकिनार करना ये मायावती का चारित्रिक ‘गुण’ है कौन नहीं जानता?
लेकिन दलित बहन,-बेटियों के ऊपर जुल्म-ज्यादती पर चुप रहने वाली मायावती का दर्द संसद में उस समय छलका था जब 16 दिसम्बर, 2013 को दिल्ली की एक सडक पर कुछ सवर्णों ने ही एक ब्राह्मण युवती (कोई पांडे) के साथ चलती बस में बलात्कार कर उसे बाहर फेंक दिया था। उस मामले में अपने ‘सगे’ सवर्णों के साथ मिलकर मायावती की चोंच संसद में जोरदार तरीके से खुली थी लेकिन दलितों की बहन, बेटियों के मामले में मायावती की चुप्पी देखते ही बनती है।
लेकिन अपने मात्र सांकेतिक अपमान से ही मायावती देश के दलितों को सड़कों पर उतरने के लिये भड़काने में लग गई है, यह जानते हुये भी कि उसके कुछ मुठठी भर चमचों, दलालों के अलावा कोई दलित अब मायावती के व्यक्तिगत मामले में सड़कों पर उतरने वाला नहीं है। आज से कुछ वर्ष पहले जब लखनऊ में मायावती की मूर्ती तोड़ी गई थी गुस्से से बिलबिलाते हुए मायावती ने दलितों से सड़कों पर उतरने की अपील की थी लेकिन जब हर ज़िले में 50-100 से अधिक लोग घंटे-दो-घंटे सड़को पर ‘विरोध प्रदर्शन’ कर, मीडिया के सामने फोटो खिचवा कर जब नदारद हो गये तो मायावती को अच्छी तरह समझ आ गया कि अब इस देश का दलित मायावती के इस ‘‘भावनात्मक शोषण’’ के जाल में फंसने वाला नही है।
अपने व्यक्तिगत हित/खेल में दलितों को इस्तेमाल करने वाली मायावती का गंदा खेल अब अच्छी तरह जग जाहिर हो गया है। साथ ही साथ यहां यह भी सोचना गलत नहीं होगा कि राजनैतिक और सामाजिक तौर पर ‘डूबती’ मायावती को बचाने या जिन्दा बनाये रखने के लिये ये सारा मामला (भाजपा नेता द्वारा अभद्र टिप्पणी) कहीं मायावती और ब्राह्मणवाद का मिलाजुला एवं पूर्व नियोजित खेल ही न हो।
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