आज हमारे समाज के लोगों ने गाँव गाँव ,गली गली, में न जानें कितने संगठन बनाये हुए है और हर एक संगठन खुद को दूसरे से श्रेष्ठ साबित करने का प्रयास करता है लेकिन ये बात मेरी समझ से परे है ,इस बात का कोई औचित्य ही नहीं है, क्या हमारी लड़ाई अपने ही लोगों से है या संगठित होकर अपने समाज को सुरक्षा प्रदान करने और समृद्ध बनाने के लिए है!
ये बड़ी विचारणीय बात है कि हमारा उद्देश्य क्या है,क्या हम आपस में ही लड़ते रहेंगे और दूसरे लोग हम पर यूँही हावी होते रहेंगे,जब प्रत्येक संगठन का उद्देश्य समाज के हितों की रक्षा करना है तो क्यों हम एक दूसरे की टांग खींचने में लगे हुए है, इन सैकड़ों संगठनों का क्या कोई औचित्य है
आखिर क्यों सारे संगठन एक बैनर तले आकर समाज की लड़ाई लड़ने का काम नहीं कर रहे है
हम सबको एक बैनर के तले आकर अपने समाज के साथ हो रहे शोषण के खिलाफ लड़ना ही होगा..
ये बड़ी विचारणीय बात है कि हमारा उद्देश्य क्या है,क्या हम आपस में ही लड़ते रहेंगे और दूसरे लोग हम पर यूँही हावी होते रहेंगे,जब प्रत्येक संगठन का उद्देश्य समाज के हितों की रक्षा करना है तो क्यों हम एक दूसरे की टांग खींचने में लगे हुए है, इन सैकड़ों संगठनों का क्या कोई औचित्य है
आखिर क्यों सारे संगठन एक बैनर तले आकर समाज की लड़ाई लड़ने का काम नहीं कर रहे है
हम सबको एक बैनर के तले आकर अपने समाज के साथ हो रहे शोषण के खिलाफ लड़ना ही होगा..
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