दलित, दलित, दलित आखिर दलित को समझ क्या रखा है ? ये बात आजतक समझ नही आई, जहाँ भी देखे वहीँ दलित को पीछे हटाने का काम किया जाता है, चाहे वो फिर राजनीति हो या फिर शिक्षा |
भला ऐसा कौनसा क्षेत्र बच जाता है जहाँ दलित के नाम पर राजनीति नही होती, भारत रत्न बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर जी ने ब्राह्मणवाद से कही हद तक मुक्ति दिलाने की कोशिस की लेकिन मुझे अभी भी महसूस होता है की दलित समाज इस क्रन्तिकारी युग में भी ब्राह्मणवाद की बाँहों में जकड़ा हुआ है|
हाँ, इस बात को कदापि नही भूलना चाहिऐ की दलित समाज में जन्मे महापुरुषों ने दलित क्रांति के लिए क्या कुछ नही किया परन्तु ब्राहमणवाद व्यवस्था अपने आप में इतनी मजबूत है की उनके जाल से मुक्ति पाना किसी भूखे शेर को प्राणों की आहुति देने जैसा हैं | वैसे इस वयवस्था को मजबूत करने में ब्राहमणवाद का कम और दलितों का ज्यादा योगदान देखने को मिलता हैं| जैसा की हम जानते है की भारत की कुल आबादी का 16 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा दलितों के पक्ष में आता हैं या फिर यूँ कहे की 167 मिलियन दलित इस देश में निवास करते है तो कोई अतिश्योक्ति की बात नही होगी लेकिन ब्राहमण व्यवस्था को मजबूत करने में दलित एवम् पिछड़ा वर्ग ही शामिल होता हैं|
हाँ मैं मानता हूँ की बाबा साहब का कारवां दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है लेकिन उसमे दलित एवम् पिछड़े समाज के लोग ही एक दुसरे की टांग खींचनें में लगे हुए है| और इसी लेग पुल्लिंग का फायदा उठाकर वो हमारा इस्तेमाल करने में अपनी तरफ से कमी नही छोड़ते| आखिर कमी छोड़े भी तो क्यों? जब पहले से ही आग लग रही हो तो पट्रोल गरने का क्या फायदा|..
भला ऐसा कौनसा क्षेत्र बच जाता है जहाँ दलित के नाम पर राजनीति नही होती, भारत रत्न बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर जी ने ब्राह्मणवाद से कही हद तक मुक्ति दिलाने की कोशिस की लेकिन मुझे अभी भी महसूस होता है की दलित समाज इस क्रन्तिकारी युग में भी ब्राह्मणवाद की बाँहों में जकड़ा हुआ है|
हाँ, इस बात को कदापि नही भूलना चाहिऐ की दलित समाज में जन्मे महापुरुषों ने दलित क्रांति के लिए क्या कुछ नही किया परन्तु ब्राहमणवाद व्यवस्था अपने आप में इतनी मजबूत है की उनके जाल से मुक्ति पाना किसी भूखे शेर को प्राणों की आहुति देने जैसा हैं | वैसे इस वयवस्था को मजबूत करने में ब्राहमणवाद का कम और दलितों का ज्यादा योगदान देखने को मिलता हैं| जैसा की हम जानते है की भारत की कुल आबादी का 16 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा दलितों के पक्ष में आता हैं या फिर यूँ कहे की 167 मिलियन दलित इस देश में निवास करते है तो कोई अतिश्योक्ति की बात नही होगी लेकिन ब्राहमण व्यवस्था को मजबूत करने में दलित एवम् पिछड़ा वर्ग ही शामिल होता हैं|
हाँ मैं मानता हूँ की बाबा साहब का कारवां दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है लेकिन उसमे दलित एवम् पिछड़े समाज के लोग ही एक दुसरे की टांग खींचनें में लगे हुए है| और इसी लेग पुल्लिंग का फायदा उठाकर वो हमारा इस्तेमाल करने में अपनी तरफ से कमी नही छोड़ते| आखिर कमी छोड़े भी तो क्यों? जब पहले से ही आग लग रही हो तो पट्रोल गरने का क्या फायदा|..
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