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तिहाड़ की चारदीवारी पर उतारा तिहाड़ का दर्द : संदीप कोली

क्या आपके मन में कभी आता है कि वो लोग अपना जीवन कैसे व्यतीत करते होंगे जो लोग अपने परिवार, घर, बस्ती, गावं यहाँ तक की अपनी जीवन आशाओं को त्याग कर एक चारदीवारी में ढेर हो जाते है,,,? हम भूल जाते है की वो भी कभी हमारी ही तरह खुले हवा में सांसे लेते थे, हमारी ही तरह मस्ती करते, खुशियाँ बांटते थे,लेकिन अब वो सिर्फ चारदीवारी में घुटकर रह गये है .... ज्यादा गमगीन होने की भी जरूरत नही पड़ती होंगी उनको जो अपनी आशाओं के सहारे को अपने गले लगाने को भी तरसते हैं ...क्यूंकि मित्रो ये बापू का देश है और उनके शिष्टाचार पर्यावरण में कहा गया है की अपराध से नफरत करो, लेकिन अपराध करने वाले से नही, लेकिन यह कथन कितना सत्य है इसका फैसला आप ही कर सकते है ? 
 दरअसल मित्रो हुआ यूँ की आज समाचार पत्र के रजिस्ट्रेशन के लिए RNI ऑफिस जाना हुआ तो रास्ते में केन्द्रीय कारागार तिहाड़, नई दिल्ली की चारदीवारी पर एकदम से नजरो का पेहरा हुआ, उस नजर में ही पता नही क्या क्या ख्याल आये अब तक नही समझ पा रहा हूँ...और उस चारदीवारी के बाहरी दिवार पर जो लिखा है उसे पढ़कर तो मानो जिन्दगी की सहूलियत ही बदल जाती है ....तिनका तिनका तिहाड़ किताब से ली गयी ये पक्तियां ;-
सुबह लिखती हूं, शाम लिखती हूं।
इस चारदीवारी में बैठी, बस तेरा नाम लिखती हूं।
इन फासलों में जो गम की जुदाई है, उसी को हर बार लिखती हूं।

तिहाड जेल की दीवार पर लिखीं ये पंक्तियां हर शख्स का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं। कविता के माध्यम से चारदीवारी के भीतर रहने वालों के अहसास और परिस्थितियों को महिला कैदी सीमा रघुवंशी ने बेहद खूबसूरती से दीवार पर उतारा है।




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